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श्रवण-कथन कौशल का अर्थ एवं आवश्यकता // Meaning and Need for Listening Skills

 श्रवण-कथन कौशल का अर्थ एवं आवश्यकता 


भाषा शिक्षा के क्रम को यदि सूक्ष्मता से देखना चाहे तो दो पहलू दिखाई पड़ते हैं :


बोधात्मक : जो भाषा शिक्षा की सिर्फ ग्रहण करने की वृत्ति की ओर ले जाता है । 

क्रियात्मक : जो किया की ओर ले जाता है ।


             भाषा शिक्षा


बोधात्मक (1)  श्रवण   (2)  वाचन

क्रियात्मक  (1) कथन  (2) लेखन


श्रवण-कथन कौशल का अर्थ एवं आवश्यकता // Meaning and Need for Listening Skills

इसको क्रम में देखें तो आँख से अधिक कान पर ध्यान देना चाहिए।"The best method in introducing linguistic forms is to make first appeal to cars, to be followed by initiatives speaking exercises" "For retention of words auditory visual process is most effective" इससे स्पष्ट होता है कि हमें पहले : ज्ञानेन्द्रियाँ और क्रियेन्द्रियाँ, सबसे पहले ज्ञानेन्द्रियाँ (Sensory organ) सक्रिय होती है बाद में क्रियेन्द्रियाँ (Motor organ) क्रिया के रूप में अनुसरण करती है ।


यदि हमे क्रमिकता का अनुबंध रखें तो भाषा शिक्षा का कार्य सफल एवम् सरल हो जाता है। इसलिए भाषा शिक्षक को सबसे पहले 'श्रवण' पर ध्यान देना चाहिए बाद में कथन पर | The first approach should be aural and second oral !"


आंख और कान ग्रहण की हुई चीज को दिमाग तक पहुंचाते और दिमाग जीभ व हाथ के जरिए विचार को प्रस्तुत करते हैं ।


श्रवण का अर्थ 

बालक सर्व प्रथम दूसरों के द्वारा प्रयुक्त भाषा को भाषा का प्रथम कौशल है। सुनने को श्रवण भी कहते हैं। श्रवण शब्द 'श्रु' धातु से बना है जिसका अर्थ है ध्यानपूर्वक सुनना श्रवण केवल मात्र ध्वनियों को सुनना नहीं है बल्कि ध्यानपूर्वक सुनकर सुनी हुई बात पर चिंतन सुनता है यहीं मनन करके आचरण करना है। सुनने में 'समझ' का होना जरूरी है । उदाहरण के लिए कोई भी व्यक्ति किसी शब्द या वाक्य को  सुनता है तो उसको अर्थ समझकर उसमें निहित् भाव, संदेश, आदि को ग्रहण करके उसी के अनुरूप व्यवहार करता है 


अतः श्रवण में मात्र सुनना नहीं बल्कि समझ चिंतन-मनन ध्यानपूर्वक सुनना आदि। श्रवण को अंग्रेजी में Listening' पर्याय है, जबकि Hearing का शाब्दिक अर्थ सुनने से ही है। दोनों शब्दों के अर्थ में अंतर भी है। Hearing का अर्थ केवल किसी ध्वनि का कान तक Listening में सुनकर समझने की प्रक्रिया भी सम्मिलित है। जैसे कि एक व्यक्ति जो अंग्रेजी भाषा के विषय में जानकारी नहीं रखता मगर उसके वर्णों पहुँचना की ध्वनि तो सुन रहा है लेकिन समझ नहीं पा रहा तो इसे Hearing कहा जाएगा । Listening में अर्थ निर्णय की शक्ति है


श्रवण की कुशलता का जीवन में अध्याधिक महत्त्व है। हम यह भूल रहें है कि बच्चों की मौखिक अभिव्यक्ति वाचन और लिखित अभिव्यक्ति की बुनियाद श्रवण की कुशलता पर आधारित होती है ।


अर्थग्रहण के साथ सुनकर क्रिया में परिणित करने का अर्थ ही श्रवण कौशल है। इतनी बात स्पष्ट होती है कि


  1. अर्थग्रहण के साथ सुनाना ।
  2. ध्यानपूर्वक सुनाना ।
  3. वक्ता के विचारों को संपूर्ण समझ लेना ।
  4. सुश्रवण की आदत बनी रहें ।
  5. कान में - सुनने की कमी न होना ।
  6. वक्तव्य को तुरन्त सुन लेना और समझना ।

"किसी का वाचन सुनने और सुनकर अर्थ एवं भाव को समझने की क्रिया श्रवण कौशल कहलाती है।"

श्रवण कौशल की आवश्यकता 

  •  वैदिक शिक्षण तथा गुरुकुल पद्धति की शिक्षा श्रवण पर ही आधारित थी वेदांत में श्रवण, मनन, चिंतन और निदिध्यासन का बहुत महत्व था। इसी कारण वेदों में श्रुति' के नाम से भी जाना जाता है। आजकल भी बच्चा अधिकांश शिक्षा सुनकर ही ग्रहण करता है। देखने में आता है कि कुछ विद्यार्थी कक्षा में अध्यापक की बात एकाग्र तथा दत्तचित होकर सुनने मात्र से ही परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करते हैं। अतः श्रवण की शिक्षा अधिगम में अहं भूमिका निभाती है ।


  • 'निदिध्यासन' का अर्थ है सत्य को जीना। निधि का अर्थ है खजाना ज्ञान, ध्यानाय का अर्थ है ध्यान निदिध्यासन श्रवण और मनन का परिणाम है।


  • जीवन में श्रवण कुशलता का अत्यधिक महत्त्व है । मौखिक अभिव्यक्ति वाचन और लिखित अभिव्यक्ति की बुनियाद श्रवण की कुशलता पर आधारित है। भाषा के चार अंगों पर जिसको प्रभुत्व होता है, वह जीवन में अवश्य सफल बन सकता है। संसार में व्यवहार में समाज में अपना कारोबार सरलता से कर सकता है । 


  • Encyclopedia of Educational Research में श्रवण शक्ति पर शोध कार्य में चर्चा करते हुए Sam duker कहा है कि आरंभिक कक्षा में 84% समय बच्चा सुनने में ने व्यतीत करता है तथा प्राथमिक कक्षाओं में 58% ।


  • आधुनिक समय की प्रि-नर्सरी तथा नर्सरी कक्षाओं में बच्चा समग्रतयाः सुनकर ही अधिगम करता है ।


  •  विद्यालय के अतिरिक्त बच्चा दूरदर्शन, रेडियो, मित्र मण्डल या परिवार के सदस्यों का वार्तालाप समय सुनकर अपना सुनने में व्यतीत करता है । 


  • शिक्षण में शोध करके यह तथ्य सामने आया है कि कुछ बच्चे पढ़ने के बजाए सुनकर ज्यादा ज्ञान प्राप्त करते हैं। वैसे भी कर्णेन्द्रिय ज्ञान प्राप्ति का महत्त्वपूर्ण साधन है।


  •  प्रो. जे. जे. वेबर ने सिद्ध किया है कि हम जितना ज्ञान प्राप्त करते है उसकी 25 प्रतिशत संकल्पनाएँ श्रवण अनुभव पर आधार रखती है


  •  ग्रीन, जोर्जसन ने संशोधन करके यह साबित किया है कि अमरिका में भाषा प्रवृत्तियों में श्रवण का उपयोग अत्याधिक होता है ।


  • प्रो. एफ. एल. बिलोझ ने श्रवण का महत्त्व बताते हुए लिखा है कि " जो शिक्षक अपने विद्यार्थी ध्यानपूर्वक सुन सके और श्रवण कौशल का विकास कर सके उस ओर निरंतर प्रयत्न करता रहता है। वह सब का प्रिय पात्र है बन  जाता विद्यार्थियों है।"


  • बालक कोई भी पदार्थ, क्रिया या व्यक्ति के गुणों को साहचर्य के जरिए तुरन्त याद रख सकता है । इससे कहा जाता है he child associates the object etc. with a combination of sounds, not with a picture of a written word in his brain" इस तरह बच्चे भाषा सीख लेते है।


  • श्रवण कौशल को एक आवश्यकता यह भी है कि विद्यार्थियों में शांत रहकर दूसरों की बाते सुनने की आदत का विकास होता है।


  • प्रवर्तमान तक्निकी युग में अनेक स्थानों पर सुनने के प्रसंग उपस्थित होते है; कोविड-19 जैसी वैश्विक महामारी ने बच्चों से लेकर बड़े तक को ओनलाईन पढ़ने के लिए मजबूर किया है जिनके फल स्वरुप आज सभी को मोबाईल के जरिये पढ़ना, लिखना और सुनना आवश्यक हो गया है । इस तरह श्रवण कौशल का विकास प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है । 


  • श्रवण के समयावधि में वैविध्य आता है। विविधता बालक को पसंद है। सच कहा है “Variety is interesting sameness in boring"


  • भाषा-शिक्षा का एक सामान्य उद्देश्य है कि "बालक समझकर सुनने की योग्यता प्राप्त करें । छोटा बालक सुनकर भाषा बोलने की शुरूआत करता है । किन्तु बड़े होने पर शुद्ध, सरल, प्रवाही, भाववाही एवं असरकारक भाषा सुनने का मौका प्राप्त करता है। शिक्षक का सस्वर पठन एवं प्रश्नों को बालक ध्यानपूर्वक सुनने का कौशल प्राप्त करता है । इस कौशल के विकास के पीछे बाकी बच्चे का भी विकास हो जाता है।"


  • श्रवण कौशल ही अन्य भाषायी कौशलों को विकसित करने का प्रमुख आधार है।


इस तरह श्रवण भाषा-शिक्षा का प्रथम सोपान है । प्रो. एफ. एल. बिलोझ का कहना है कि

Teachers who find ways to train their pupils to listen attentively and concentrate on what they hear are well rewarded, for a good listener is always an agreeable person and is likely to be open to new ideas than a bad listener"


कथन कौशल (मौखिक अभिव्यक्ति कौशल)

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह अपने विचारों का प्रत्यायन समाज में रहकर ही करता है। जब तक वह अपने विचारों भावों को दूसर के सामने प्रस्तुत नहीं करता तक उसे आराम नहीं मिलता | चाणक्य नीति में भी कहा गया है कि


"प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः 

तस्मात्तदेव वक्तव्यं वचने का दरिद्रता ॥"

                -चाणक्य नीति (16/23)


यदि अन्य व्यक्तियों से प्रिय लगनेवाली भाषा में बातचीत की जाये तो सभी को सन्तोष प्राप्त होता है। इसलिए सदैव मधुर भाषा का व्यवहार  करना चाहिए और ऐसा करने में अपनी दरिद्रता क्यों प्रदर्शित की जाय। है ?

 भाषा कौशल का उपयोग समाज में व्यवहार स्थापित करने के लिए है। व्यक्ति विचारों के आदान-प्रदान के लिए भाषा के निम्न दो स्वरूपों का उपयोग करता है -


  • मौखिक अभिव्यक्ति

  • लिखित अभिव्यक्ति


वाणी मनुष्य को इश्वरप्रदत्त वरदान है  |अभिव्यक्ति में वह भाषा का प्रयोग करता है, जो मौखिक और लिखित दोनों स्वरूप में होती है।


मौखिक अभिव्यक्ति कौशल  भाषण भी कहते है। मौखिक कौशल को अभिव्यक्ति को अंग्रेजी में Speaking या Speech भी कहते हैं । 


"जब व्यक्ति ध्वनियों के माध्यम से भाषा को उच्चरित करता है तो उसे मौखिक अभिव्यक्ति कहते हैं । इस सामान्य रूप में बोलचाल भी कहा जाता है। व्यक्ति अधिकांश कार्य व्यापार मौखिक रूप से ही करता । यह लिखित भाषा की अपेक्षा पुरानी है। यह अधिक सरल एवं सुविधाजनक होती है । बोलचाल के माध्यम से ही व्यक्ति अपने संदेश को दूसरों तक है पहुंचा सकता है । अतः यह एक सोद्देश्य प्रक्रिया है ।"


कथन कौशल का अर्थ 

जब विद्यार्थी अपने विचारों एवं भावों को स्पष्ट रूप से प्रकट करने का प्रयास करता है, तो उसे कथन या भाषण का सहारा लेना पड़ता है। भाषा कौशल के आधार पर ही उनकी अभिव्यक्ति का मूल्यांकन किया जाता है। जब एक विद्यार्थी सस्वर एवं धाराप्रवाह रूप में बोलते हुए अपने विचारों । प्रस्तुत करता है, तो यह माना जाता है कि कथन कौशल की योग्यता है। 


फ्रांसीसी लेखक कार्लाइल ने कहा है कि को

"भाषण के दौरान कुंछ पल का विराम और मौन भाषण शक्ति को प्रखर बनाते हैं।"


हमारा समग्र जीवन-व्यवहार बोलचाल पर ही निर्भर है। मा की गोद में पयपान करता बच्चा बोलचाल की शिक्षा पाता है। वह जैसा सुनता है वैसा बोलने का प्रयास करता है, क्योंकि बच्चे स्वभावतः अनुकरणप्रिय होते है। आगे चलकर बोलचाल उनके जीवन का अविभाज्य अंग बन जाता है। बोलचाल का ढंग प्रभावशाली नहीं है तो वह जीवन में निष्फल होता है। बोलचाल का कौशल मनुष्य की भाषा को देता है । 


कबीरजी ने ठीक ही कहा है कि-

"ऐसी बानी बोलिए मन का आपा खोय 

औरन को शीतल कर आपहु शीतल होय ॥" 


आज वकील, शिक्षक, डोक्टर, कथाकार या अच्छे वक्ता के जीवन की सफलता का राज बोलचाल में ही छिपा रहता है । 


कथन कौशल की आवश्यकता 


मीठी वाणी, शिष्ट भाषा और वाक्चातुर्य से कोई भी व्यक्ति जीवन में सफल हो सकता है । समाज में अनुकूलन प्राप्त करने के लिए संसार को अपना परिवार बनाने के लिए 'वसुधैव कुटुम्बकम्' की भावना को चरितार्थ करने के लिए मौखिक अभिव्यक्ति की आवश्यकता है। संक्षेप में शिक्षा के क्षेत्र में बोलचाल की आवश्यकता निम्न प्रकार बता सकते है। 


  • मौखिक अभिव्यक्ति से आत्मविश्वास में वृद्धि होती है तथा प्रश्न पूछकर वाद-विवाद या वार्तालाप से व्यक्ति अपनी उत्सुकता को शांत करता है।


  • वाक्कला में व्यक्त्ति निपुण हो जाता है ।


  • मौखिक भाषा का प्रयोग करने से भाषाकीय कौशल का विकास होता है।


  • भाषा का वास्तविक रूप मौखिक ही है । 


  • बोलचाल द्वारा कोई भी भाषा बड़ी सरलता से सीखी जा सकती है।


  • भाषण देना मौखिक भाषा का ही रूप है, भाषण ही महत्ता से सब लोग परिचित है।


  • पढ़ने-लिखने की अपेक्षा बोलचाल बालकों की अधिक रुचि रहती है । 


  • व्यक्तित्व का परिचायक है, कहा गया है 'वाण्येका समलंकरोति पुरुष' तथा 'तावद् शोभते मूर्ख : यावत् किज्यिन्न भाषते ।'


  • मौखिक भाषा रूपी नींव पर ही बालक के लिखित रूपी जीवन का निर्माण होता है ।


  • विद्यालय परिवेश में समस्त विषयों का ज्ञानार्जन इसी से होता है। 


  • मौखिक अभिव्यक्ति के माध्यम से विद्यार्थी द्वारा कठिन विचारों को भी सरलतम रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है तथा दूसरे के मनोभावों को भी सरलतम रूप से समझा जा सकता है। 


  • मौखिक अभिव्यक्ति के माध्यम से विद्यार्थियों का व्यक्तित्व विकसित होता है, क्योकि वे प्रत्येक तथ्य का प्रस्तुतिकरण सारगर्भित एवं प्रभावी रूप से करने में सक्षम होते हैं ।


  • थोमसन एण्ड पेट ने कहा है : Book-work and pen work introduce passivity instead of activity oral activity”


    पुस्तक पाठ तथा लेखन कार्य सक्रियता के स्थान पर निष्क्रियता उत्पन्न करता है । मौखिक कार्य क्रियाशीलता पैदा करता है। 




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